बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
सगुण भक्ति धारा
निर्गुण भक्ति नीरस होने के कारण अधिक लोगों को प्रभावित नहीं कर सकी। इस भक्ति में निवृत्ति मार्ग की प्रधानता के साथ-साथ वैराग्य, ज्ञान, निराकार के प्रति प्रेम आदि की प्रधानता थी। इसमें अभिव्यंजना की शुष्कता थी और जीवन दृष्टि अपेक्षाकृत एकांगी थी। यही कारण था कि परमात्मा के सगुण रूप की उपासना का सूत्रपात हुआ। सगुण भक्ति दो की धाराओं कृष्ण काव्य और राम काव्य के माध्यम से प्रवाहित हुई। कृष्ण भक्ति में जहाँ एक ओर जीवन की सामान्य भावनाओं वात्सल्य, सख्य, रति भाव के सभी रूपों की परिणति भक्ति में दिखाई देती है; वहीं दूसरी ओर राम भक्त तुलसीदास ने वैदिक धर्म की पुनः प्रतिष्ठा से सम्बन्धित हिन्दू जीवन की आकांक्षा को मूर्त रूप प्रदान किया और जीवन की समस्त परिस्थितियों के लिए आचार एवं धर्म के मानदण्ड दिये।
तुलना
सगुण भक्तिधारा की दो प्रमुख धाराएँ हैं - राम भक्ति धारा तथा कृष्ण भक्ति धारा। इन धाराओं में पर्याप्त अन्तर व समानताएँ हैं। सगुण काव्य में राम व कृष्ण दोनों विष्णु के अवतार माने जाते हैं। दोनों के प्रति सगुण भक्ति का प्रावधान है और दोनों के प्रति आत्मसमर्पण एवं अनन्य निष्ठा प्रदर्शित की गयी है परन्तु फिर भी दोनों में सिद्धान्तगत एवं शैलीगत अन्तर है और दोनों में दृष्टिकोण सम्बन्धी मतभेद हैं। रामकाव्य तथा कृष्णकाव्य की तुलना यदि सिद्धान्त की दृष्टि से करें तो निम्नांकित तथ्य सामने आते हैं।
(क) रामकाव्य में भक्ति दास भाव की है, जिसे वैधी भक्ति के अन्तर्गत रखा जाता हैं। इसमें मर्यादा पर अधिक बल दिया जाता है। रामकाव्य में वर्णाश्रम धर्म, कर्मकाण्ड और वेद-मर्यादा आदि के प्रति पूर्ण विश्वास व्यक्त किया जाता है। कृष्ण काव्य में प्रतिपादित भक्ति माधुर्य भाव की है जिसे रागानुराग भक्ति की सीमा में स्थान प्राप्त है। कृष्ण भक्ति कवियों के यहाँ मर्यादा के लिए कोई महत्व नहीं है।
(ख) रामकाव्य में राम आराध्य हैं अतः बड़े हैं उनके भक्त छोटे हैं। "राम सौ बडौं कौन मोसो कौन छोटो। इसी लघुत्व के कारण कहा गया है। इसके विपरीत कृष्ण काव्य में कृष्ण भक्तों के सखा हैं और जहाँ आराध्य और आराधक में सखा भाव रहता है, वहाँ बड़े-छोटे का कोई भेद नहीं रहता है। सूर के सख्य भाव की भक्ति से प्रेरित होकर ही कहा है-
" खेलत में को काकौ गुसैयाँ।'
(ग) शुद्ध भक्ति की दृष्टि से वैधी भक्ति को ईश्वर सानिध्य यदि प्रथम सोपान माना जा सकता है, तो रागानुगा भक्ति को उसका अन्तिम सोपान।
(घ) रामकाव्य में लोक संग्रह और लोक रक्षक की भावना का प्राधान्य है, तो कृष्ण काव्य में लोक रंजन की ओर ही कवियों का सारा ध्यान केन्द्रित रहा है। लोक सेवा भाव की भक्ति होने के कारण राम काव्य में मर्यादाओं का एकमात्र भी अतिक्रमण नहीं मिलता है जबकि सखा भाव की भक्ति में मर्यादायें अतिनिकटता व सामीप्य के कारण स्वतः ही टूट जाती हैं।
(ङ) रामकाव्य में किसी प्रकार की कोई आध्यात्मिक प्रतीकात्मकता नहीं मिलती है जबकि कृष्ण काव्य में सभी पात्रों का प्रतीकात्मक व्यक्तित्व निरूपति हुआ है।
(च) राकामव्य के प्रमुख प्रवर्तक रामानुजाचार्य है और बाद में इसी मार्ग पर चलकर रामानन्द ने रामोपासना को प्रचारित किया है तथा कृष्ण काव्य के प्रमुख प्रवर्तक बल्लभाचार्य है।
दृष्टिकोण के आधार पर तुलना
रामभक्तों व कृष्ण भक्तों ने अपने अपने दार्शनिक दृष्टिकोणों के आधार पर अपने उपास्यों के प्रति भक्ति की नाना विधाओं को ग्रहण किया है। -
1. कृष्णकाव्य में मथुरा रति का महत्व सर्वोपरि है, परन्तु रामकाव्य समन्वय की विचार चेष्टा को लेकर चला है। भाव, भाषा, शैली, छन्द तथा इष्टदेव सभी क्षेत्रों में समन्वय मिलता है तुलसी ने राम को महत्व दिया है और सूर ने कृष्ण को।
2. महाकवि तुलसीदास ने भगवान राम की महिला का गुणगान अधिक किया है जबकि सूरदास जी ने कृष्ण की आराधना की है। सूर को छोड़ दिया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि सभी कृष्ण भक्ति कवि पुष्टीमार्गी होने के कारण ही साम्प्रदायिकता के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि राम काव्य इससे परे हैं।
जनसम्पर्क व युग जीवन के आधार पर तुलना
1. इस बिन्दु पर कृष्ण काव्य अधिक समृद्ध हैं। वह स्वान्तः सुखाय होकर भी सर्वसुखाय है।
2. रामकाव्य में तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों के घात- प्रतिघात का सजीव चित्रण मिलता है। जबकि कृष्णकाव्य में न तो जन-जीवन का कोई चित्रण मिलता है और न ही युगीन परिस्थितियों का आकलन ही मिलता है।
3. रामकाव्य के पात्र अतिमानवीय और अलौकिक तो हैं किन्तु वे फिर भी वे ऐसे होकर भी हमारे बीच के लगते हैं। हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाले प्रतीत होते हैं जबकि कृष्ण काव्य में ऐसा नहीं है कृष्ण के भक्तों की दुनिया तीन लोक से न्यारी है। वे कृष्ण की रागानुभक्ति में इतने विरक्त रहे हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की खबर ही नहीं रही है।
4. कृष्ण काव्य के कृष्ण 'नीवी बन्धन' तक खोलने का उपक्रम करते हैं; श्री फलों का स्पर्श करते हैं, किन्तु राम काव्य के राम बड़े शिष्ट और मर्यादावादी होने के कारण कुप्रभावी कवियों की ओर ध्यान तक नहीं देते हैं। असल में राम भक्त कवियों को समाज के हित अनहित का बोध है और कृष्ण भक्ति का कवि अपने में मस्त है।
भाषा की दृष्टि से तुलना
1. राम काव्य की भाषा अवधी है जोकि राम की जन्म भूमि से सम्बन्धित है, जबकि कृष्ण काव्य की भाषा ब्रजभाषा है। कृष्ण काव्य भाषा के स्तर पर केवल ब्रज की माधुरी तक ही सीमित रहा है। जबकि रामकाव्य की भाषा अवधी से लेकर ब्रज तक फैली है। तुलसी की विनय पत्रिका इसका एक प्रमाण है।
2.भाषा परिष्कृति और तत्समी वृत्ति जो राम काव्य में है, वह कृष्ण काव्य में कहीं नहीं मिलती।
रचना शैली की दृष्टि से तुलना
1. रामकाव्य प्रबन्ध शैली प्रधान है और कृष्ण काव्य की शैली मुक्तक प्रधान है।
2. शैली वैविध्य की दृष्टि से रामकाव्य समृद्धि है तो कृष्ण काव्य संकीर्ण और निर्धन है।
निष्कर्ष : वस्तुतः सम्पूर्ण कृष्ण भक्ति काव्य आनन्द एवं उल्लास का काव्य है और भावना की दृष्टि से वह काव्य अनुपम है। आचार्य हजारी प्रसाद के शब्दों में कृष्ण काव्य मनुष्य की रसिकता को उद्बुद्ध करता है। उसकी अन्तर्निहित लालसा को उर्ध्वमुखी करता है और उसे निरन्तर रसासक्ति बनाता है। सामान्य प्रवृत्तियों का तुलनात्मक विवेचन करने पर हम संक्षेप मंु यही कह सकते हैं कि सगुण काव्यधारा के दोनों काव्य राम भक्ति भाव एवं कृष्ण भक्ति भाव में पर्याप्त अन्तर रखते हैं यों तो दोनों का महत्व है किन्तु व्यापकता की दृष्टि से राम काव्य श्रेष्ठ हैं भले ही उसका कृष्ण काव्य की तुलना में कम विकास एवं प्रचार हुआ है।
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- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
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- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।